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15.3.14

पतझड़ की शाम (Hai Yeh patjhad ki shaam sakhe)

है यह पतझड़ की शाम, सखे!

नीलम-से पल्लव टूट गए,
मरकत-से साथी छूट गए,
अटके फिर भी दो पीत पात 
जीवन-डाली को थाम, सखे!
है यह पतझड़ की शाम, सखे!

लुक-छिप करके गानेवाली,
मानव से शरमानेवाली,
कू-कू कर कोयल मांग रही
 नूतन घूँघट अविराम, सखे!
है यह पतझड़ की शाम, सखे!

नंगी डालों पर नीड़ सघन,
नीड़ों में हैं कुछ-कुछ कंपन,
मत देख, नज़र लग जाएगी; 
यह चिड़ियों के सुखधाम, सखे!
है यह पतझड़ की शाम, सखे!


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...................................................................हरिवंश राय बच्चन

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