वर दे
वर दे!
वीणावादिनि वरदे!
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे!
काट अंध उर के बंधन स्तर
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष-भेद - तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे!
नव गति, नव लय, ताल, छंद नव,
नवल कंठ, नव जलद - मंद्र रव,
नव नभ के नव विहग-वृन्द को
नव पर नव स्वर दे!
.................................................................................सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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