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25.1.14

YEH ISHQ NAHI AASAN

मासूम मोहब्बत का बस इतना फ़साना है,
कागज़ की हवेली है,बारिश का ज़माना है. 

क्या रस्म-ए-मोहब्बत है,क्या शर्त-ए-ज़माना है,
आवाज़ भी ज़ख़्मी है और गीत भी गाना है. 

टूटा हुआ दिल अपना यूँ उनको दिखाना है,
भीगी हुई आँखों से एक शेर सुनाना है. 

उस पार उतरने की उम्मीद नहीं रखना,
कश्ती भी पुरानी है,तूफ़ान भी आना है. 

नादानी मेरे दिल की फिर इश्क़ की ज़द पर है,
फिर आग का दरिया है,फिर डूब के जाना है. 

ये इश्क़ नहीं आसान बस इतना समझ लीजिये,
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है.

.......................................................................................Anonymous

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